आज आँखो में नींद नहीं
पर मायी तू लोरी ना सुनाना
खुलीआँखों से सपने ना चुराना
रात केअन्धेरे में मुझे खोना नहीं है
थकन तो बहुत है, पर मुझे सोना नहीं है
उस पार सवेरा मेरा इंतज़ार कर रहा है
मैं चाँद की सवारी पर हूँ
कब बत्तियां बुझेंगी
जुगनू नहीं दिखेंगे, तारे नहीं चमकेंगे
घड़ी की सुई सा टिक-टिक करता
ये रात का सफ़र बहुत लम्बा है
उलझन सी है, पर मुझे सोना नहीं है |
हर एक गुज़रता हुआ पल कुछ कह रहा है
ना बीता हूँ, ना रुका हूँ
तेरी ज़िंदगी में क़िस्सा-क़िस्सा जुड़ रहा हूँ
मैं ख़ुद से ही बातें कर रही हूँ
या वक़्त कोई कहानी बुन रहा है
गली का चौकीदार जागने को बोल रहा है
उसे नहीं पता शायद
घूमते हुए पंखे पर टकटकी लगाये हुई
मेरी निगाहें जाग रही हैं
पलकें भारी हो रही हैं, पर मुझे सोना नहीं है |
अभी तो बहुत से पन्ने पलटने हैं
कुछअच्छे, कुछ बुरे
कुछ भूले-बिसरे
कुछ तरो-ताज़ा
हर याद समेटी है रात के मुशायरे में
मेरी और झिंगुर की क्या खूब जुगलबंदी है
मेरे ख्याल उसकी आवाज़ बन कर
कोई धुन सुना रहे हैं
ख़ामोशी टूट गई पर रात अभी बाकी है
मुझे उगते हुए सूरज को देखना है
इस ख्याल पर एक झपकी आकर चली गयी
करवटों की जद्दोजहद बड़ गई हैअब
आसाँ तो नहीं ये,पर मुझे सोना नहीं है।
A poem by Sudha Kripal
"I have loved the stars too fondly to be fearful of the night."
- Sarah Williams
Categories:
Hindi Poetry,
Insight
Wonderful...lyrics n flow is good...