बहुत याद आती है पुराने मकान की छत पर गुजरी वो बचपन की रातें। पहले झाड़ू से चूने की छत को साफ़ करने की मुहिम फिर पानी की बाल्टी से छिड़काव और अंत में उस पानी के सूखने पर उठने वाली भीनी-भीनी खुश्बू। दरियाँ बिझा कर लाईन से बिस्तर बिछाने की क़वायद। पानी की सुराही के मुंह को लोटे से ढंक कर रखने के जतन। नानी से कहानी सुनाने की ज़िद। लेट कर दिखाई देने वाले वो सप्तऋषि मंडल के तारे। । कभी आधी रात को मौसम ख़राब होने पर वो अपने अपने बिस्तर समेट कर नीचे भागने की जल्दी।
काश, वो वक्त फिर से आ जाए जहाँ कम जगह में ज्यादा लोग रह लेते थे। एक ही सब्ज़ी के साथ छक कर खाना खा लेते थे। सब आपस में बोलते-बतियाते थे। मस्ती और शैतानियां तो खूब थी, मगर छल-प्रपंच कोई नहीं जानता था। ठहाकों की गूंज पूरे मोहल्ले में सुनाई देती थी।
कोई तो लौटा दे हमें - वो छत, वो बारिश, वो तारे, वो ठहाके, वो वक़्त, और वो हम।
- डॉ दिव्या कसल जैन
Best things in life aren’t things.
- Mike Ness
Best things in life aren’t things.
- Mike Ness

Good to read hindi after a long time.. I wonder if u remember me. Id been in hibernation writing a book. https://www.facebook.com/Navigating-Relationships-116835966718499/